राजनांदगांव (BTI)– स्थानीय बाबा रामदेव मंदिर में हर साल होली के अवसर पर आयोजित होने वाली पारंपरिक ‘बच्चों को ढूंढने’ की रस्म इस वर्ष भी विधि-विधान से संपन्न होगी। मंदिर के पुजारी कोमल तंवर इस परंपरा का निर्वहन करेंगे।

यह अनूठी परंपरा राजस्थान, विशेषकर मारवाड़ क्षेत्र में प्रचलित रही है, जिसमें लोकगीतों के माध्यम से नवजात एवं तीन वर्ष तक के बच्चों के उज्ज्वल भविष्य, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। घूमने को लेकर आमतौर पर राजस्थानी या मारवाड़ी भाषा में गीत गाए जाते हैं जो बच्चों और गांव वालों के बीच आसानी से पहुंचती है इसमें मां-बाप परिवार और समुदाय की ओर से बच्चों के लिए दुआएं होती है उदाहरण के लिए ऐसे गीतों में सुखी रहो यश कमाओ लंबी उम्र पांव जैसे भाव देखने को मिलते हैं।
डूंडना और इससे संबंधित गीत मनोरंजन नहीं होता बल्कि यह एक तरह का सामाजिक संस्कार भी है। होली का समय बसंत ऋतु में आता है जो नई शुरुआत और उर्वरता का प्रतीक है। नवजात बच्चों को इस उत्सव में शामिल करना और उनके लिए गीत गाना एक शुभ संकेत माना जाता है और गांव के बड़े बुजुर्ग इन गीतों के जरिए बच्चों को आशीर्वाद देते हैं। यह सामुदायिक एकता को भी मजबूत करता है। वर्षों पुरानी यह परंपरा अब शहरीकरण के बावजूद भी राजस्थान के मारवाड क्षेत्र में कम नहीं हुई है। राजनांदगांव में इसे स्वर्गीय खाती जी ने जीवंत रखा और अब कोमलजी तंवर इसकी निरंतरता बनाए हुए है।

50 वर्षों से अधिक पुरानी परंपरा
सदर बाजार के लूणकरण खाती, जिन्हें ‘मदमस्त रसिया’ के नाम से जाना जाता था, ने इस परंपरा को राजनांदगांव में वर्षों तक जीवंत बनाए रखा। वे अपने साथियों के साथ चग की थाप में न केवल सदर बाजार की होली को जीवंत बनाए रखा बल्कि इस डूंडने की परंपरा को भी कायम रखा। लूण जी खाती एवं राजस्थानी सोनी,सेन एवं अन्य समाज के रसियों द्वारा यहां होली का रंग ऐसा जमता था कि इसकी तुलना दिल्ली के सदर बाजार व करोलबाग से की जाती थी। लूणकरण खातीजी के निधन के बाद स्थानीय लोगों के भावों को पढकर स्थानीय रामदेव बाबा मंदिर में इस परंपरा को पुजारी कोमल तंवर इसे आगे बढा रहे है।
13 और 14 मार्च को दिन भर चलते रहेगा यह आयोजन
मंदिर के पुजारी कोमल तंवर ने बताया कि इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च को होगा। उसी दिन सुबह मंगल आरती के बाद से यह धार्मिक अनुष्ठान शुरू होगा। जो भी परिवार मारवाड़ी परंपरा के अनुसार अपने छोटे बच्चों को इस रस्म में शामिल कराना चाहते हैं, वे 13 और 14 मार्च को बाबा रामदेव मंदिर आ सकते हैं।
बच्चों को लोकगीतों और भक्ति संगीत के साथ आशीर्वाद दिया जाएगा। इस अवसर पर भगवान के गुणगान के साथ उनके सुखद भविष्य की मंगलकामनाएं की जाएंगी। यह आयोजन क्षेत्र में सांस्कृतिक एवं धार्मिक परंपराओं के संरक्षण का महत्वपूर्ण उदाहरण है।